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Monday, March 19, 2012

अभी कल ही तो था !!!!!!

अभी कल ही तो था !!
जब अनजान गलियां  और मैं ,ऊँगली पकड़ कर ,
सीधे रास्तों को छोड़ ,मिल कर शाम को ढूँढा करते थे
फिर किसी किनारे के सिरहाने बैठ कर ,देर तलक
ढलते सूरज से बातें किया करते थे
वो सुकून कहीं गुम हो गया है शायद
और अब रात भी वक़्त से पहले जाती है कम्बख्क्त!!!!


अभी कल ही तो था
जब ताश के पत्ते भी घर बनाते थे ,
एक दुसरे का हाथ थामे सिमट से जाते थे 
हम सब के लिए एक कोना मुकम्मल था उसमें 
दरवाजे और दस्तक की रंजिश भी ख़ूब मशहूर थी उन दिनों ,
मगर हवा का रुख कुछ तेज़ है आजकल शायद 
और उन पत्तों की खामोशियाँ भी अकेले नज़र आती हैं !!!!!


अभी कल ही तो था 
जब हमारे हाथों में एक का सिक्का भी मुस्कुराता था 
कभी मेले में तो कभी हाट में उछलता हुआ चक्कर लगा  लेता था 
उसको डर नहीं था कहीं गुम होने का,न कभी बड़े होने की जिद थी 
कई बार मेरी किलकारियों को खरीदा था बेहिचक उसने 
आज जंग सा लग गया है उसमें , बूढा हो चला है शायद 
अब तो उसके बिना जीने की आदत सी होने लगी है 


अभी कल ही तो था 
जब शब्दों की आवाज़ हुआ करती थी 
अब तो सिर्फ शोर है ,और उस शोर की सरहदें 
और जो  कल आने को है उसकी आहट भी कुछ कुछ सुनाई देती है  
अब उस गुज़रे कल का वक्त हो चला है  , बहुत पुराना सा था भी शायद 
और  उसको अलविदा कहने का वक़्त है , अश्क के साथ 

अभी कल ही तो था ...
...................................................................................अश्क 










कुछ इधर उधर !!

अभी उम्मीदों की उड़ान बाकी है ,
               मेरी ख्वाहिशों में थोड़ी सी जान बाकी है !
डूबी तो कई बस्तियां इस बार की बारिश में
                मगर सड़क पार एक पुराना मकान बाकी है !!




कुछ इस कदर बदला है वक़्त का कारोबार अश्क
     की बाज़ार में आइने सस्ते और अक्स महंगे हैं!!




लो उतार दी कश्तियाँ हमने मझधार में
              अब तो इंतज़ार बस किसी तूफ़ान का है !!!






जिन ख्वाहिशों की खातिर हम अपनी ज़िन्दगी मिटाते हैं ,
                 उन के टुकड़े मुझे फकीरों के कटोरों में नज़र आते हैं !!






यूँ मेरे साथ चंलने का हासिल तुझे है ऐ वक़्त
                      की दोनों की सांसें कुछ उखड़ी हुई हैं !!




बारिश की चाँद बूंदों का असर देखिये !
               नुक्कड़ की तपती ख्वाहिशें डूबी हैं रात से !!






यूँ तो ज़िन्दगी के हासिल थे बहुत किरदार मेरे !
               ये तो वक़्त का पर्दा था जो कभी कभी उठता था !!




यूँ राह पर मेरी , शफक की रुस्वाइयां मिली !
          जब भी पलट कर देखा , परछाइयां मिली !!




तेरे इश्क के ग़ालिब आज इस कदर फ़साने हैं !
             न वो आग का दरिया है न डूबने के बहाने हैं !!




संगमरमर की राह न मिली तो क्या मलाल है अश्क !
                      इन रास्तों पर ज़िन्दगी फिसलती जरा कम है !!


कुछ इधर उधर !!