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Monday, March 19, 2012

कुछ इधर उधर !!

अभी उम्मीदों की उड़ान बाकी है ,
               मेरी ख्वाहिशों में थोड़ी सी जान बाकी है !
डूबी तो कई बस्तियां इस बार की बारिश में
                मगर सड़क पार एक पुराना मकान बाकी है !!




कुछ इस कदर बदला है वक़्त का कारोबार अश्क
     की बाज़ार में आइने सस्ते और अक्स महंगे हैं!!




लो उतार दी कश्तियाँ हमने मझधार में
              अब तो इंतज़ार बस किसी तूफ़ान का है !!!






जिन ख्वाहिशों की खातिर हम अपनी ज़िन्दगी मिटाते हैं ,
                 उन के टुकड़े मुझे फकीरों के कटोरों में नज़र आते हैं !!






यूँ मेरे साथ चंलने का हासिल तुझे है ऐ वक़्त
                      की दोनों की सांसें कुछ उखड़ी हुई हैं !!




बारिश की चाँद बूंदों का असर देखिये !
               नुक्कड़ की तपती ख्वाहिशें डूबी हैं रात से !!






यूँ तो ज़िन्दगी के हासिल थे बहुत किरदार मेरे !
               ये तो वक़्त का पर्दा था जो कभी कभी उठता था !!




यूँ राह पर मेरी , शफक की रुस्वाइयां मिली !
          जब भी पलट कर देखा , परछाइयां मिली !!




तेरे इश्क के ग़ालिब आज इस कदर फ़साने हैं !
             न वो आग का दरिया है न डूबने के बहाने हैं !!




संगमरमर की राह न मिली तो क्या मलाल है अश्क !
                      इन रास्तों पर ज़िन्दगी फिसलती जरा कम है !!


कुछ इधर उधर !!















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