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Monday, July 20, 2009

चल रहा हूँ !!!



चल रहा हूँ बेजान रास्ते पर ,
किसी जिंदा मंजिल की तलाश में !

हँसते हैं मील के पत्थर
मेरी इस मायूस कोशिश पर ,
छुप के देखती हैं कुछ नज़रें,
फ़िर सिसकती हैं!
और बिलखते हैं वो कांटे,
जो चुभते हैं मेरे पैरों में,
वही कांटे जो किसी गुज़र चुकी
ज़िन्दगी की खामोश गवाही देते हैं ! 
बरसती हैं आसमा से कुछ आवाजें 
जो बर्फ सी सर्द हैं और सफ़ेद भी!
जो बीते हुए वक्त की दास्ताँ ,
सुनाने से पहले टूट जाती हैं
और मैं अपनी उम्मीदों आशाओं और हौसलों के
शीशे की चटकन भी सुनता हूँ ,
फ़िर सुनाई देती हैं मुझे,
मेरी और मेरी मंजिल की उखड़टी हुई साँसे!
पर,
मैं गुम होने से पहले इन वीरानो में,
कुछ हँसते मकान छोड़ जाऊंगा!
हाँ , इन्ही धूल भरे रास्तों पर अपने ,
पैरों के निशान छोड़ जाऊंगा !
उनके लिए जो टटोलेंगे इन रास्तों पर,
मेरी मंजिल की लाश को ,
कुरेदेंगे उसे इक नए जोश से ,
किसी अटकी हुई साँस की आस में!

चल रहा हूँ बेजान रास्तों पर
किसी जिंदा मंजिल की तलाश में !!!!!!!! 

.................................................."अश्क"

2 comments:

  1. bahut achha hai.kafi dino bad kuchh sensible padhne ko mila hai.pahli kavita to bahut hi achhi hai.

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  2. sir,i m proud to be ur junior...fantastic.

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