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Saturday, September 26, 2009

टुकड़े !!!

जिदगी हर वक्त दो पहलुओं के बीच झूलती रहती है। यह कविता जीवन के उन टुकडों की तरफ़ इशारा करते हैं जिन्हें हम याद नही रखना चाहते पर हम भूल जाते हैं यही तो हमें सिखाते हैं ज़िन्दगी को जीने का तरीका!!!!!!



टुकड़े !!!



गर गौर से देखो तो
टुकडों में जीते हैं हम

कभी साथ साथ, कभी अलग थलग
यही टुकड़े बनाते हैं ज़िन्दगी ।

ये बिखरते हैं जिन दरारों के कारण ,
जुड़ते भी हैं उन्ही किनारों के कारण ।

कुछ टुकड़े हँसतें हैं, कुछ चुपचाप खड़े रहते हैं ,
कुछ यूँ ही आदे तिरछे पड़े रहते हैं ।

कुछ उड़ते हैं रौशनी के आसमान पर ,
कुछ अंधेरों में जड़े रहते हैं ।

कुछ के वजूद को ख़ुद साँसे देते हैं हम,
कुछ के सीने में खंजर गडे रहते हैं ।

पर आज एहसास है इस लुढ़कते हुए " अश्क" को

की ये ज़िन्दगी पूरी नही होती ,
इन खोये हुए टुकडों के बगैर भी ।

रह जाती है कुछ कमी सी
इन नापसंद टुकडों के बिना

और अन्दर का खोखलापन साफ़ नजर आता है
जब नही होते यह अपनों जगह पर
क्यूंकि
ज़िन्दगी की सफ़ेद चादर पर बने सुराखों को
इन्ही काले पैबन्दों से सीते हैं हम

"गर गौर से देखो तो टुकडों में जीते हैं हम "
......................................................."अश्क"









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