अभी कल ही तो था !!
जब अनजान गलियां और मैं ,ऊँगली पकड़ कर ,सीधे रास्तों को छोड़ ,मिल कर शाम को ढूँढा करते थे ।
फिर किसी किनारे के सिरहाने बैठ कर ,देर तलक
ढलते सूरज से बातें किया करते थे ।
वो सुकून कहीं गुम हो गया है शायद
और अब रात भी वक़्त से पहले आ जाती है कम्बख्क्त!!!!
अभी कल ही तो था
जब ताश के पत्ते भी घर बनाते थे ,
एक दुसरे का हाथ थामे सिमट से जाते थे
हम सब के लिए एक कोना मुकम्मल था उसमें
दरवाजे और दस्तक की रंजिश भी ख़ूब मशहूर थी उन दिनों ,
मगर हवा का रुख कुछ तेज़ है आजकल शायद
और उन पत्तों की खामोशियाँ भी अकेले नज़र आती हैं !!!!!
अभी कल ही तो था
जब हमारे हाथों में एक का सिक्का भी मुस्कुराता था
कभी मेले में तो कभी हाट में उछलता हुआ चक्कर लगा लेता था
उसको डर नहीं था कहीं गुम होने का,न कभी बड़े होने की जिद थी
कई बार मेरी किलकारियों को खरीदा था बेहिचक उसने
आज जंग सा लग गया है उसमें , बूढा हो चला है शायद
अब तो उसके बिना जीने की आदत सी होने लगी है
अभी कल ही तो था
जब शब्दों की आवाज़ हुआ करती थी
अब तो सिर्फ शोर है ,और उस शोर की सरहदें
और जो कल आने को है उसकी आहट भी कुछ कुछ सुनाई देती है
अब उस गुज़रे कल का वक्त हो चला है , बहुत पुराना सा था भी शायद
अब उस गुज़रे कल का वक्त हो चला है , बहुत पुराना सा था भी शायद
और उसको अलविदा कहने का वक़्त है , अश्क के साथ
अभी कल ही तो था ...
...................................................................................अश्क